Thursday, July 10, 2014

गजल-२७३ 

घर घराऱी बाँटि लेलक
खेत कोठी बाँटि लेलक

चाहमे लोलुप अनेरक
वाहवाही बाँटि लेलक

चारि दिनकेँ जिंदगीमे
लोक थारी बाँटि लेलक

नै सकल क्यौ बाँटि सुख दुख
धरि तबाही बाँटि लेलक

माय बापोकेँ कमासुक
पूत पापी बाँटि लेलक

लोक बऱ राजीव निरघट
पाँच काठी बाँटि लेलक

2122 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

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