Saturday, July 5, 2014

गजल-270

के सहत किछु आ किए जे
बेकहल सभटा किए जे

हिय जरा सभकेँ कहू ने
चलि रहल दुनियाँ किए जे

मरि रहल धरि भान ने किछु
ई घृनित चरजा किए जे

नै कथूकेँ सोच रहलइ
नै विवेको हा किए जे

अछि बचल राजीव कोना
युग बढनिझट्टा किए जे

2122 2122
© राजीव रंजन मिश्र

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