Thursday, July 31, 2014

गजल-२९१ 

मजा अमीरीमे नै फकीरीमे बेसी
सजा गरीबीमे नै अमीरीमे बेसी

बुझब सुनब कम्मे धरि बनब बड़का काबिल
सरासरी गदहापचीसीमे बेसी

चलल जकर घर नै आ सुनल जकरा घर नै
तकर भेटत नाम यौ कमीटीमे बेसी

जहाँ चढ़ा लेलक फेर मोजर की ककरो 
अनेर बमदलकी एक शीशीमे बेसी

मजा सजाकेँ राजीव चिंता के करतै
सजा रहल सपना रईसीमे बेसी

12 1222 2 1222 22
@ राजीव रंजन मिश्र 

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