Thursday, July 24, 2014

गजल-282

बैसल छी गुमसुम फुरा नै रहल किछु
बीतल जे बचपन मजा नै रहल किछु 

धानक ओ आँटी कि खेतक मड़ैय्या 
घुरि फिरि जे ताकी सखा नै रहल किछु 

आमक ओ टिकुला कि थुर्री लतामक
अरनेबा झक्खा कहाँ नै रहल किछु

गामक ओ मैय्याँ कहाँ आइ गेलै
कचड़ी आ झिल्ली बना नै रहल किछु 

भेटल ई राजीव जीवन सुखक धरि
जिनगीमे कनियो बुझा नै रहल किछु 

२२ २२२ १२२ १२२
© राजीव रंजन मिश्र

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