Monday, June 25, 2012

परमात्मा जौं देने छथि लिखबाक कला 
त अपन लेखनीक ताकत के व्यर्थ नै करी
लेखक आ कविक होइत छैक किछु जिम्मेदारी
ई सोचि किछु लीखी जे शब्द के द्विअर्थ नै करी

जानैत बुझैत सबटा नीक आ बेजा 
नकारात्मक सोच आ चीज़क समर्थ नै करी
खराबक बखान क$ सेहो करेज तानि क$ 
लोक के बुरियाबय के अनर्थ नै करी

एक त ओनाहितो कमी नै थीक कुचालि केर
कुरीति के बढ़ाबय के शर्त नै धरी
लेखनीक ताकत के इतिहास थीक गवाह
हे प्रभु! जौं लीखी त लिखबाक अर्थ नै हरी


----राजीव रंजन मिश्र 
  ३१.०५.२०१२ 

No comments:

Post a Comment