परमात्मा जौं देने छथि लिखबाक कला
त अपन लेखनीक ताकत के व्यर्थ नै करी
लेखक आ कविक होइत छैक किछु जिम्मेदारी
ई सोचि किछु लीखी जे शब्द के द्विअर्थ नै करी
जानैत बुझैत सबटा नीक आ बेजा
नकारात्मक सोच आ चीज़क समर्थ नै करी
खराबक बखान क$ सेहो करेज तानि क$
लोक के बुरियाबय के अनर्थ नै करी
एक त ओनाहितो कमी नै थीक कुचालि केर
कुरीति के बढ़ाबय के शर्त नै धरी
लेखनीक ताकत के इतिहास थीक गवाह
हे प्रभु! जौं लीखी त लिखबाक अर्थ नै हरी
----राजीव रंजन मिश्र
३१.०५.२०१२
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