Friday, May 2, 2014

गजल-२२६ 

फूकि पजारल घूर छी बाबू
हाँ यौ हम मजदूर छी बाबू 

दुनियाकेँ सभ देल धरि अपने 
गत्तर गत्तर भूर छी बाबू 

रोटी कपऱा ठाँवकेँ खातिर 
बेचल कित्ता धूर छी बाबू 

जीनगीकेँ सभ रंगमे खदकल 
छानल करगर झूर छी बाबू 

सभटा हमरे हाथके रचना 
नै धरि शाने चूर छी बाबू 

की मोजर आ मोल के देलक 
ककरा आँखिक नूर छी बाबू 

जइरेकेँ राजीव नित बिसरब 
जगतीकेँ दस्तूर छी बाबू 

2222 21 222 
@ राजीव रंजन मिश्र

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