Monday, May 19, 2014

गजल-२३२ 

साँचकेँ आँच की 
तीन आ पाँच की 

मानि ली बातकेँ 
खोंच आ खाँच की 

धर्मकेँ नाम पर 
जातिगत नाँच की
 
बेरपर जैब बुझि 
ठोस आ काँच की 

फूसि राजीव नै 
लाख हौ'क जाँच की 

२१२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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