Wednesday, May 14, 2014

गजल-२३० 

राम राजक जरूरत घर-घरमे 
चलि रहल धरि सियासत घर-घरमे 

के कहत के छी कम आ के बेसी 
माल जालक हुकूमत घर-घरमे
 
लिपि तँ बिसरल बहुत पहिने यौ बाबू 
मायक भाषा उपासत घर-घरमे 

खोज गामक रहल नै ककरो धरि 
जान चाही अमानत घर-घरमे 

बानि राजीव मनुखक नै बदलल 
नीक लोकक फजीहत घर-घरमे 

२१२२ १२२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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