Tuesday, May 27, 2014

गजल-२३९

नोरकेँ नै मोल रहलै
मेल आ नै जोल रहलै  

के करत ककरासँ गप-शप
आब नै मिठ बोल रहलै 

ठोढ़केँ दियमान फाजिल
बोल फूटल ढोल रहलै

बान्ह बान्हल की प्रशाषन
खोलि बरसा पोल रहलै 

माथ तरकेँ गेरुआ गुम 
रुइसँ चरफड़ खोल रहलै

बाट जोहल आँखि जकरे
सैह बनि अनमोल रहलै 

गाम नै पहुँचल ग' बिजली
ठाढ़ ठुठ्ठा पोल रहलै 

छै पियासल मोन बड़ तैँ
भरि अपन सभ डोल रहलै 

बेश ठगलक फेर नेता
हाथमे बस ओल रहलै 

नाम पर सद्भावनाकेँ
झूठकेँ अनघोल रहलै 

जीब टा राजीव कहुँना
छीः मनुखकेँ गोल रहलै 
२१२२ २१२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment