Wednesday, May 28, 2014

गजल-२४० 

चालि चलन नै राखब ऊँच
फेर कथी के बाजब ऊँच

जाति धरमकेँ सिक्कर थाम्हि
अपने मोने साजब ऊँच

साफ अनेरे बोली राखि 
किर्ति कि कहियो मानब ऊँच

फूसि चढेने छाती बेश
जुनि सोचू जे लागब ऊँच

एक कसौटी राजीवक
नेह निमाहू जानब ऊँच

२११२ २२२ २१  
@ राजीव रंजन मिश्र 

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