Tuesday, May 20, 2014

गजल-२३३ 

आगि जेना बरसा रहल छैक गरमी 
देह मनुखक झड़का रहल छैक गरमी 

चामकेँ झड़का गेल ई दिन दहाड़े 
रातियोमे तड़पा रहल छैक गरमी 

मोन सदिखन छै भेल विपरीत सभकेँ
साँस लोकक अटका रहल छैक गरमी 

पानिकेँ नै किछु मोल बुझलक मनुख तैँ 
पानि खातिर तरसा रहल छैक गरमी 

के सहत राजीव किछु अनुराग नेहक 
मोनकेँ टा गरमा रहल छैक गरमी  

२१२२ २२१२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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