Wednesday, January 8, 2014

गजल-१६५ 

सभ लागल रही साल बीतैत रहल 
बिलमल नै कनी साल बीतैत रहल 

अछि झोँका चलल प्रश्नकेँ एक सए
भेटल की कथी साल बीतैत रहल

बस देखा क' चलि गेल सपने त' बुझू 
जनि सुन्नरि परी साल बीतैत रहल 

अछि शुरुआत पुनि देह मरदनसँ धियक 
टूटल नै कड़ी साल बीतैत रहल

आबो व्यर्थ नै होइ राजीव समय 
नबका किछु करी साल बीतैत रहल  

222 1221 22112 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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