Thursday, January 30, 2014

गजल- १७९ 

बात करत सभ दुनिया भरिकँ 
आस भरोसक पथिया भरि कँ 

चान तरेगन अपने ठाम 
काज इजोरक डिबिया भरि कँ 

बोल वचन सभ मिठगर खूब 
तीत अकत धरि किरिया भरि कँ

घाम पसीना नेहक झूठ 
मोल किदन किछु मिसिया भरि कँ 

धर्म करम बस नामक चौल  
फूल प्रसादी अढ़िया भरि कँ 

भेल उताहुल जग राजीव 
दौगि रहल घुसकुनिया भरि कँ 

२११२ २२२ २१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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