Friday, January 24, 2014

गजल-१७५ 

मोन कहुँना मना लेब हम फेरसँ
राति गुम सुम बिता लेब हम फेरसँ 

अछि बरल नेह बाती कहब मीत त'
फूकि सभटा मिझा लेब हम फेरसँ 

गीत नेहक रुचल नै तखन हारि क'
दुख गजल गुनगुना लेब हम फेरसँ

चान चढ़िते हिया दाबि सूतब ग' कि
घोंट दू गो चढ़ा लेब हम फेरसँ 

नै सुनत हाक राजीव ओ आब जँ
चुप मुँहें घुरि विदा लेब हम फेरसँ 
  
२१२२ १२२१ २२११ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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