Wednesday, January 22, 2014

गजल-१७४ 

सूरज पूरब उगबे करत
चन्ना घटबे बढ़बे करत 

सत्ते गप थिक ई ओतबे  
जनमल जे से मरबे करत 

काबिल बुधिकेँ रखलक सचर  
सनकल बहकल बुरबे करत 

पैघक छोटक टा मान जे 
राखत से धरि जितबे करत 

बरसाती बेंगक काज की 
पड़िते बुन्नी बजबे करत 

आइग फूसक सम्बंध टा 
स्त्री पुरुषक नित रहबे करत 

मानब ई राजीवकेँ 
पापक घइल फुटबे करत 

२२२२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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