Friday, January 17, 2014

आन दिनक अपेक्षा आइ कनी सबेर-सकाल आँखि फुजि गेल,जाड़क किरदानी देखि किछु फुरा गेल,प्रेषित अछि अपने लोकनिक सोंझा :
गजल-१७२ 

हाड़ कँपकपा रहल अछि जाड़ 
देह कनकना रहल अछि जाड़ 

ठाढ़ भेल डाँर कसने दोमि 
टांग थरथरा रहल अछि जाड़ 

बस गरीब आ अमीरी देख 
बोल बड़बड़ा रहल अछि जाड़ 

साज बाज टोप चादर देखि 
माथ धड़ खसा रहल अछि जाड़
 
कैथरी लदल मनुखकेँ पाबि 
दाँत कटकटा रहल अछि जाड़ 

हाल की कहू अपन राजीव 
मोन चटपटा रहल अछि जाड़ 

२१२ १२१२ २२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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