Thursday, June 12, 2014

गजल-२५३ 

सत धरि बऱी चीज भारी छै बाबू
हल्लुक सहज नै सबारी छै बाबू

कोना कँ जे लोक नेमाहत टा सतकेँ
बेशी तँ हारल जुआरी छै बाबू

अपना हिसाबे तँ काबिल छै कुकुरो
उधिया रहल से अनारी छै बाबू

मानत गँ जगती सबेरे बा साँझे
मरने हरेने पुछारी छै बाबू

जिनगीक राजीव किछु नै ठेकाना
अनमन कँ लागल उधारी छै बाबू

2212 2122 222
@ राजीव रंजन मिश्र 

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