Tuesday, June 24, 2014

गजल-२६० 

काबिल वैह जे निकहा बीछल 
सभटा देखि नै खबटा बीछल 

लोकक हाथमे करमे टा तैँ 
करमक साँढ़केँ चरजा बीछल 

बड़ बूरि लोक टा अपना खातिर  
आसन नीक आ ऊँचका बीछल 

दूसल आनकेँ जे नित सदिखन  
विधना फेर नै तकरा बीछल 

यौ बड़ मंद छी बुधि राजीवक
बड़ आभार जे विधना बीछल  
 
२२२१ २ २२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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