Thursday, June 12, 2014

गजल-२५२ 

नेहक छाँहमे मोन जरल नित
जरि मरि आह आ ओह कहल नित 

मारे दर्द बा सुखकेँ कखनो
रहि रहि आँखिकेँ नोर बहल नित 

सगरो कात ई नेह सिनेहक
मारूक फेरमे लोक मरल नित

धुरफंदीक ई हद्द तँ देखू
जे मारल सए धरि एक गनल नित

अजगुत खेल राजीव ई जिनगी
हारल वैह जे जीत रहल नित   

२२२१ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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