Monday, June 9, 2014

गजल-२५० 

अपने समस्त बंधु-बान्धव,जेठ-श्रेष्टक असीम सिनेह आ आशीर्वादक ब'ले प्रेषित कए रहल छी अपन २५०'म गजल,स्नेहाकांक्षी रहब :

ककरा करमक अपन हिसाब देबै ग'
कोना नेहक भरल गुलाब देबै ग'

जखने भेटत कनिकबो जँ पलखैत
माथा सरदर झुका अदाब देबै ग'

भन्ने सहि लेब दुख हियक तँ चुप्पे भ'
टुटने बहने उझलि चिनाब देबै ग'

कतबो आँहाँ बिसरि चलब हमर नाम
अपना हियकेँ कथी जवाब देबै ग'

जुलमी जगकेँ इनाम हम तँ राजीव
अपना खूनक लिखल किताब देबै ग'

2222 1212 1221 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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