Sunday, June 22, 2014

गजल-२५८ 

गामसँ घुरती काल मोन मन्हुऐल सन लागैत छैक,हमरे टा नै सभकेँ मुदा उपाय किछु नै। 
प्रेषित अछि हमर ई गजल एहने किछु भाबकेँ समेटने :


किछु बात तँ छै ऐ ठाँ बाबू
बड़ मोन लगै ऐ ठाँ बाबू

यौ गाम घरक बाते अलगे
भरि पोखि भरै ऐ ठाँ बाबू

बड़ मोन हकासल जकरो से
किछु काल हँसै ऐ ठाँ बाबू

सुख चैन भरल शीतल सुरभित
पुरबाइ बहै ऐ ठाँ बाबू

राजीव बड़ी धरि दुखकेँ गप
नै पेट चलै ऐ ठाँ बाबू

221 12 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

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