Saturday, October 5, 2013


गजल-११५ 
सभ बात मोनक मोनेमे रहि गेल
सभटा अपन धरि सोचल सभ कहि गेल 

कोशिश रहल नै भिजबी आँखिक कोर
धरि नोर रतुका भिनसरमे बहि गेल 

के हाल बूझत बाजब कोना क'
देखल मधुरगर सपना जे ढहि गेल 

हम छी अपाटक मारल नित अपनेकँ
पजिया अनेरो अनको दुख सहि गेल

राजीव देखल निसि बासर ई खेल
बहुतोकँ पासा अनचोके लहि गेल
२२१ २२२२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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