Thursday, October 3, 2013

गजल-११४  

जिनगी खेल तमाशा टा छैक
आसक संग निराशा टा छैक

के जानल ग' कखन केहन रंग
दैबक हाथ त' पासा टा छैक

राखल नित जँ विवेकक ओहार
मिठगर फेर बताशा टा छैक

नित बस आस अपन हाथे टाक
भेटल कोन नबासा टा छैक

चल राजीव सदति सत पथ टा ध'
किछु खन लेल कुहासा टा छैक 

2221 122 221
@ राजीव रंजन मिश्र 

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