Sunday, October 13, 2013


गजल-१२

बड दुख लागि रहल सभ लखिकँ
धरि किछु आब कहब की चढिकँ


मानल कोन पतित पतितपावनकँ
सहकल बानि मनुख तन रहिकँ


के मानल ग' ककर सरकार
सभकें मान भुवन सन बढ़िकँ 


बिसरल ज्ञान विवेकक पाठ
पलटल लोक कहल सभ गछिकँ


दोसर चाह कहाँ राजीव
राखथि नाथ सहज गति मतिकँ 


२२२ ११२ २२१
@ राजीव रंजन मिश्र
 


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