Saturday, October 12, 2013


गजल-११९ 

बड अजगुत ई रीति जगतकें 
देखल चुप रहि ठाढ़ खसलकें 

के राखल आवेग दबा आ 
के मानल अहलाद अपनकें

लोकक बाते बानि गड़ासा
खेलल नित धुरखेल बहसकें 

पावनि टालक टाल उठौलक
डाहल मोने भार रभसकें

जीहक चलते जीव चढ़ल बलि 
रोकत के राजीव चलनकें   
   
२२२ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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