Monday, October 21, 2013

गजल-१२८ 

जरुरतसँ बेसी भेटल मनुखकँ मर्म नै
प्रयोजनसँ बेसी राखब दबाकँ धर्म नै 

कहत बात ठोकल कोना करेज तानि क्यउ 
बनल मान दानक स्तम्भ जिरात कर्म नै

बोध ग्यान हारल मातल मनुख बनल असुर
सदाचार लोकक परिचय बनत ग' चर्म नै

नरम बोल आ लीबल माथ टेक नित बनत 
मुहँक बोल छुछ्छो करगर विचार गर्म नै 

भ' राजीव सभ निरलज मोहरा चलल सधल
लजा गेल दइबो धरि लोक टाकँ शर्म नै

१२२१ २२२२ १२१ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र

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