Wednesday, October 30, 2013

गजल-१३३ 

खन खन मोन ई अकुलाएल बहुत छल
भेटल लोक नित भसिआएल बहुत छल 


बाजत सभ अनेरक खटरास करत बस 
पकरल हाथ तैं गरमाएल बहुत छल 


भ्रष्टाचार मेटेबा लेल कहत टा 
नित धरि नोटकें तहिआएल बहुत छल 


के मानत ककर अभिमानक त' भरल सभ
अवसरपर नमरि घिघिआएल बहुत छल 


जैं राजीव सदिखन भगवान सचर बड
बारल लोक तैं सरिआएल बहुत छल   


२२२१ २२२२ ११२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

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