Saturday, November 30, 2013

गजल-१४७ 

गाममे छी, घरसँ सटल पोखरिक अनुपम प्राकृतिक छटा देखि नै रहल गेल...किछु कहि गेलहुँ,सचित्र प्रेषित अछि 
अपने लोकनिक सोझाँ :

बगुला बैसल जाठिपर
आँखिक पुतली माछपर

लोकक सदिखन सोच धरि
टांगब सभकेँ चाँछपर

के बूझत गप आनकेँ
सभकेँ धाही चानपर

भेटल नै सहजे कमल
चिक्कन चुनमुन घाटपर

अकुलायल राजीव छी
तुरछल अपने आपपर

2222 212
@ राजीव रंजन मिश्र

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