Sunday, November 24, 2013

गजल-१४५ 

दू घोंट अपना हाथे आइ पिया दिय' प्रिये
बस चारि आखर नेहक फेर सुना दिय' प्रिये 


कनि आउ संगे बइसू हाथ धरू हाथमे
किछु चाह बेकल मोनक पुरा दिय' प्रिये


दू नैन काजरकें लजबैत गरल तीर सन
ई प्राण कोना बाँचत बाट सुझा दिय' प्रिये 


रूपक गजल हम भाखब पी क' नेहक सुरा
किछु बोल हमरा गजलक आर फुरा दिय' प्रिये 


मारल जगतकें छी राजीव सदति सभदिनक
हकदार अपना नेहक आइ बना दिय' प्रिये 


२२१ २२२२ २११२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र 

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