Friday, November 15, 2013

गजल-१४३

किछु लोहाक आ किछु लोहारक दोष छल
धरि लोकक हिसाबे सभ भागक दोष छल

नित बुधियार मानल एक्के टा गप्पकेँ
आनक नै किछु अपने काजक दोष छल

सभ निकहा त' अरजल अपने सुधि बुधि बले 
बस अधलाह खन सभटा आनक दोष छल

नै पलखैत अछि ककरो लग देखत सुनत
घर बिलटल त' सेहो सरकारक दोष छल 

धरि ठेकान राखल करमक राजीव जे
तकरा नै कनिकबो जोगारक दोष छल 
२२२१  २२२२  २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment