Sunday, November 3, 2013

गजल-१३६ 

जगमग जोति दिया-बातीकेँ
हरषल लोक बिसरि सातीकेँ

अजगुत रंग रहल सभदिनका
बिसरल पीर जुरा छातीकेँ

चाहब लाख मुदा नै सपरत
बाबत गान कलम पातीकेँ

आँगन द्वारि सजल छल जेना
अनमन रूप त' अहिबातीकेँ 

हो राजीव सभक जिनगीमे
चैनक राति चहक प्रातीकेँ 

2221 12222
@ राजीव रंजन मिश्र 

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