Monday, April 28, 2014

गजल-२२३ 

कलम आइ बाजह धुर्झार फेरो
लिखह मोनकेँ सभ मनुहार फेरो

ब्यथा मोनकेँ थिक ई बऱ उताहुल
बना लेब तोरे हथियार फेरो

कखन देल मोजर किछु लोक सतकेँ
सजल पाप-फुइसक दरबार फेरो 

उठाबह उचित आ अधिकारकेँ गप
जँ से नै तँ कहतह धिक्कार फेरो 

ककर दोष देखब ककरा कि दुसबै
भरल छैक सगरो अखबार फेरो

गजब खेल देखल सदिखन सगर ई
हिया तोरि हँसलै संसार फेरो

गरीबक कठिन छै दू ग्रास जूटब
क्षुधा जरि उड़ल बनि घनसार फेरो 

जँ राजीव वेदन मोनक लिखा जै
तँ भेटत हियाकेँ सुखसार फेरो

1221 222 2122
@ राजीव रंजन मिश्र

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