Monday, April 14, 2014

गजल-२१६ 

समय सालकेँ ई तकाजा चलए छै 
हिया तोड़ि लोकक जमाना चलए छै 

चहूँ कात देखल बिधनाकेँ माया 
गजब आइ घर घर तमाशा चलए छै 

अपन काज पड़िते तँ छिटकय छै जत तत 
सहटि संग धेने पराया चलए छै 

अपन हाथमे नै रहल किछुओ मनुखक 
मुदा कोन ककरो बहाना चलए छै 

जँ इतिहास राजीव उनटब ई भेटत 
खसनिहार पर बड़ ठहाका चलए छै 

१२२१ २२ १२२ २२२ 

@ राजीव रंजन मिश्रा 

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