Friday, April 4, 2014

गजल-२११ 

सभ आगूमे हम बाद रही
धरि अपनामे आजाद रही 

ठानी जखने किछु बात प्रभू
बनि अविचल ध्रुव प्रहलाद रही

नित भाखी हम मधु गीत गजल
आ साधल टा सुरनाद रही 

नै चाही किछुओ आर सदति
सभ देने आशिर्बाद रही  

नै अभिलाषा राजीव हियक
जे झूठक बनि अहलाद रही  

२२२२ २२११२
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment