Sunday, September 7, 2014

गजल-३०८ 

शत बेर नमन छी सभ शिक्षककेँ
जे जीब सिखा देला जीवनकेँ 

उपकार बड़ी थिक हे विद्वतगण
नै ऋण सधत तम हरनाहरकेँ 

आभार अहाँकेँ मानै सदिखन
दै मोन गवाही चित अर्पणकेँ 

छै आइ जमानामे किछुओ जे
से छैक बँचल कारण शिक्षणकेँ 

जे देल जगतमे जीबाकेँ गुन
राजीव सुमरि ली तै गुरुवरकेँ 

२२१ १२२२ २२२
©राजीव रंजन मिश्र

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