Tuesday, September 16, 2014

गजल-३१६ 

गुनवान बनू गतिशील बनू
हे आब अहाँ नल नील बनू

जे ठोकि चलै आ खत्म करै
ताबूत मँहक से कील बनू

थिक बाट सहज नै सरिपहुँ धरि
हुलकैल कुकुर नै चील बनू

अक्लांत हिया नै शांत अडिग
तैँ खास कँ चिंतनशील बनू

राजीव रमनगर नेह भरल
नित मानसरोवर झील बनू

221 12 221 12
@ राजीव रंजन मिश्र 

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