Monday, September 22, 2014

गजल-३२१ 

बाप पितामह चान चढ़ल धरि पूत अनेरे छलकल जाय 
ताहि मनुखकेँ बाजू बाबू कोन हिसाबक मानल जाय 

हारि रहल छै निकहा आ सभ ठोकि रहल अधलाहक पीठ 
आर कते जे भोगत जगती सोचि हिया से हहरल जाय 

छोट उताहुल तेहन जे नै भान किछो मरजादाकेँ 
पैघ अपन नै राखल गरिमा ठोकि कहल फरियावल जाय 

हाथ त'रक छल गेले पहिने पैर त'रक सेहो टा जैत 
लोक मुदा नै चेतत करनी कोन हिसाबे टोकल जाय 

मोन कहै बुरिबक छी ने राजीव किए छी गुमसुम भेल 
माथ कहै बाजू खाहियारल घाव कते दिन झाँपल जाय  

२११२ २२२२२ २११२२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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