Thursday, July 18, 2013

गजल-८९

दुनियामे क्यौ नै ककरो ऐ ठाम होइत छै
सपने टामे चाहल बस आराम होइत छै

फ़ुइसक ई सभटा खेती जिनगीक थिक बाबू
भाबक नै ऐ ठा कखनो किछु दाम होइत छै 

दरदक मारल लोकक बड इतिहास भेटत नित
मलहम नै ककरो कहियो धरि गाम होइत छै 
  
नेहक नै कोनो मोजर कलिकालमे भेटत
बुझनुक चित मारल सभदिन बदनाम होइत छै


पूरल नै किछु सेहन्ता राजीव धरि मानल 
करनी नै कहियो ककरो बेनाम होइत छै

२२२२ २२२ २२१ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  

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