Monday, July 1, 2013

गजल- ८०



गजल- ८० 

बिन जरेने हिया ने ईजोर होइत छै 
राति बितला क' बादे टा भोर होइत छै

आँखि फूजल जँ राखब सूझत तखन मीता
कष्ट सहलाक बादे टा तोड़ होइत छै 

बाट काँटे भरल नै कतबो किएक हो
चलिकँ जितबाक स्वादे बेजोड़ होइत छै
  
पानि विर्रों सहब सभटा छाँह रउदक नित  
मोन तपलाक' बादे टा गोर होइत छै

जानि राखब सदति सत "राजीव" ई धरनिक 
नाम किरियाक' बादे टा शोर होइत छै 

२१२२ १२२२ २१२२२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

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