Thursday, July 18, 2013

गजल-८७

गजल-८७ 

हमर कहनाम जे चुप रहब बाजएसँ बढियाँ 
भने मरि जाइ धरि सभ सहब मारएसँ बढियाँ 

कहब की हाल मोनक सुनल सभ सदति उचारल 
बढ़ल छल दुख करेजक मुदा टारएसँ बढियाँ  

बुझल सभदिनसँ दुख देनहारक मरम क' धरि हम
कलपि नित माथ पीटब कि सुधि हारएसँ बढियाँ  

मरब घुटिघुटि क' सदिखन जँ अनकर खराब चाहब 
बचब नित अहिसँ सदिखन त' मुँह बाबएसँ बढियाँ  

कहल राजीव मानब करब नित सभक सराहल 
अपन हिस्सक सुधारब त' गरियाबएसँ बढ़ियाँ   

१२२२१ २२१२ २१२ १२२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

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