Tuesday, May 21, 2013


गजल-६०

बुझि जेतय ई जगती सगरो अपना मे जीवट राखबत'
झुकि एतय यौ सुरुजो चन्ना समटल जौं भाभट राखबत'

इतिहासक जौं खाता देखब सभटा बुझबा मे आओत 
खुलि मानब बस करनीये टा गहना छै जौं रट राखबत'

मानब ने गप कहबी कखनो अपने टा धुन मे नित गैब 
चलि देतय जग पाछू पाछू करतब जौं चित पट राखबत'

खाहियारल ई गप टा बुझि राखब धरि यौ बाबू सरकार
बुरियायब जौं कथनी बड आ करनी मे भांगट राखबत' 

"राजीव"क ला अनढन सनहक सभटा ई चिकरब दिन राति 
किछु भेटत ने कतबो कैने किरिया जौं धरकट राखबत'

२२२२ २२२२ २२२ २२२२१

@ राजीव रंजन मिश्र 

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