Thursday, May 30, 2013


गजल-६५ 

बीतल कालक मधुर याद मे ससरि रहल अछि ई जीवन
मातल मोनक मकर जाल मे हहरि रहल अछि ई जीवन

जानत के आ रहल जानि के दसो दिसा मे औ बाबू
कंकर पाथर भरल बाट मे लसरि रहल अछि ई जीवन

कौखन हरियर लदल गाछ ई मरल परल कखनो मुरझा
सींचल करमक कलम बाध मे चतरि रहल अछि ई जीवन

बुझनुक जीतल सदति खेल ई खहरि मरल नित छल बुरिबक
कोने कोने नगर गाम मे हकरि रहल अछि ई जीवन

बूझत के आ सुनत बात के अपन अपन थिक सोचब यौ   
बीछल बाँछल बचल गाछ मे मजरि रहल अछि ई जीवन 

2222 12212 1212 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

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