Wednesday, May 1, 2013


गजल-५३ 

हम मैथिल छी सबसँ पहिने,तकर बाद किछु आन छी
वेद पुराणक मुहें बखानल,हमरा लोकनिक मान छी

हिमालयक तलहट्टी हमरे आ हमरे अछि बाबा धाम
हमरे बागमती कोशी गंडक,कमला बुढ़िया बलान छी


याज्ञवलक्य आ चन्दा हमर,हमरे विद्यापति आ मंडन
गौतम कणाद आर नागार्जुन हमरे वंशज महान छी 


पश्चिम चंपारणसँ जामतारा,किशनगंज आ शेखपुरा
बिहार,झारखण्ड,नेपाल मे पसरल हमर सीमान छी


लह-लह करैत माटि हमर,भरल गहुम आ धानसँ
घर-घर फैलल हमर मिथिलाक चीज़ पान-मखान छी 


हम बाढि झेलल,भूकंप सहल आ रौदी में खूब तपल
तैय्यो सक्कत डाँरक' ठाढ़ रहल,भेल ने झूरझमान छी

रंजू गेली जान गँवा कए,हम यैह आब ठानल मोनसँ 
झग़ड़ू-बिमल-सुरेशक व्यर्थ ने करबाक बलिदान छी 

बड्ड रहल ठुकराओल हम,आब आर ने चुप बैसब
"राजीव"कहैथ नेतागणसँ,छोड़ू बुझब हम अज्ञान छी


(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-22)  
@राजीव रंजन मिश्र

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