Friday, March 8, 2013

अंतरराष्ट्रीय नारी दिवसक अवसर पर  सभ गोटेकँ  हार्दिक शुभकामनाक संग परसि रहल छी अपन ई गजल : 

गजल-३६ 

हे नारि उठू हुंकार भरू
सहियारि चलू ललकारि चलू

छी मान अँही अभिमान अँही
हहरल हियके परतारि कहू


नित नाम रहै जनमानस मे
करतबकँ छड़ी तलवार धरू


बदलत जगती सहजे नइ ई
जगतारनि बनि पुनि ठाढ़ करू 


ने लाज ढहै अहलाद रहै
सुनगाकँ कनी चिनगारि चलू


ने काज चलत खटराससँ हे
अवधारि दियरि नित बारि बढ़ू 


"राजीव" सुनू हे माय धिया
जगमे नब तेजक संग बहू 


22112 221 12

@ राजीव रंजन मिश्र 






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