Thursday, August 14, 2014

गजल-२९७ 

नगर नगरमे आइ तिरंगा 
लहर लहर फहराइ तिरंगा 

बिना सिमानक नील गगनमे   
बिहुँसि बिहुँसि मुसकाइ तिरंगा 

करै प्रवाहित जोश हियामे 
जखन जखन लहराइ तिरंगा  

रहै सदति खन ऊँचकँ आसन  
बढ़ति सदति चलि जाइ तिरंगा

हमर सभक राजीव यहै थिक 
जनक जननि आ भाइ तिरंगा 

१२१२ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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