Tuesday, March 25, 2014

गजल-२०५ 

ककरो की भान जे की बीत रहल ककरा पर 
कनियो ने सोच जे के जीत रहल ककरा पर 

कोनो बैबे तँ नै छै आइ मनुखकेँ मोजर 
जानी नै के बना ई रीत रहल ककरा पर 

दूइभकेँ नाम नेसानो तँ पड़ल आफतमे 
मोती बनि ओस धरि पीहीत रहल ककरा पर                                                                                   
ओना कहबाक खातिर बात चलत ढाकी भरि 
धरि सतमे आब किनको प्रीत रहल ककरा पर 

बड़का बूरि लोक टा राजीव झमारल नेहक 
बूरिबकहा गाबि दोषक गीत रहल ककरा पर   

२२२ २१२२ २११२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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