Friday, September 20, 2013

गजल-१०६ 

नै चाहितो बड किछु करा जाइ छै यौ
बुधि ग्यान सहजे गऱबऱा जाइ छै यौ 

कतबो किएके नै सचर लोक मोनक
दिन काल पलटल आ धरा जाइ छै यौ

कहबाक खातिर जे संगी जन्म जन्मक
दरकार पऱिते ओ परा जाइ छै यौ 

गरमी बहुत छल जाममे मान दानक
धरि हाक सुनिते हिय जऱा जाइ छै यौ 

राजीव सदिखन माथ राखब लिबा नित
जखने उठल सभ चरमऱा जाइ छै यौ

बहरे सरिअ - 2212 2212  2122

@ राजीव रंजन मिश्र 

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