Tuesday, September 17, 2013

भक्ति गजल - ४ 

आहाँ छी ज्ञान दरसन नित मानि ई रहल छी 
दुरगुन अछि बड मुरारी हम जानि ई रहल छी 

कोनो नै बाट छोड़ल दिअमान लेल कौखन 
बहकल छी धरि करेजा नित तानि ई रहल छी 

सूझल टा दोष आनक निज चालि बेश लागल 
सुधरल नै भाग डाहल बस कानि ई रहल छी 

कखनो नै हाथ छोड़ल कोनो पतित अधमकेँ
नेहक छी खान माधब नित बानि ई रहल छी 
 
सेवामे प्रभु चरण टा राजीव नित बिताबी 
बिसरल छी हम जगत आ दिन गानि ई रहल छी   

२२२ २१२२ २२१ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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