Thursday, August 15, 2013


गजल- ९७ 

जन गनसँ चलल अछि खेल केहन ई
हिय हारि रहल दुख देल केहन ई 

देशक त' कहब की हाल यौ बाबू
सोनाकँ चिरै छल भेल केहन ई 

जकरेसँ लगौलक आस से तोड़ल
घर घरकँ जरेलक तेल केहन ई 

दुरभाग कही बा भोग छी करमक
नित ओलि सधा सभ गेल केहन ई

राजीव करेजक पीर के मेटत
रक्षकसँ पिचाँसक मेल केहन ई  

२२१ १२२ २१२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  

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