Monday, August 12, 2013

गजल -९५ 

सभटा अहाँ बुझएत छी हम की कहू 
अपनो अहाँ सहएत छी हम की कहू 

मोनक कहाँ ककरो जगत कहियो रहल 
फकरा बहुत सुनएत छी हम की कहू 

धुर खेल छी जिनगी त' अपना आपमे 
बचि बचि क' नित रहएत छी हम की कहू 

बस चारि खन सौहार्दक पैबाक' ला     
खसि उठि क' पुनि खसएत छी हम की कहू 

राजीव जगतक हाल किछु नै बुझि पड़ल 
बुझि सुझि क' कवि बनएत छी हम की कहू 

 २२१२ २२१२ २२१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

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